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कविता

जिंदा रहना चाहता है इंसान

बोरीस स्‍लूत्‍स्‍की

अनुवाद - वरयाम सिंह


जिंदा रहना चाहता है जिंदा इंसान।
जिंदा रहना चाहता है मौत तक और उसके बाद भी।
मौत को स्‍थगित रखना चाहता है मरने तक
निर्लज्‍ज हो चाहता है कहना : ''तो अब''

सुनना चाहता है आने वाले कल के समाचार
चाहता है उनके बारे बात करना पड़ोसी से।
दोपहर के भोजन पर खुश रखना चाहता हूँ पेट को,
मन-ही-मन उड़ता रहता हूँ एक दूसरी जगह।

अंत तक चाहता हूँ देखना पूरी फिल्‍म
सीलन भरी कब्र में लेट जाने से पहले,
मैं नहीं चाहता कि मृत्‍यु के समाचारों में
सबसे पहले बताई गई हो मेरी मौत।

अच्‍छा लगेगा मुझे यदि कोई युवा दु:साहसी
हिम्‍मत करे मुझे मेरे सामने कहने की : 'बुढ़ऊ'
शर्म नहीं आती जिये जा रहे हो अब भी
तुम्‍हें तो कब का मर जाना चाहिए था।

 


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